भारत के वीर सेनानी, तू अभी भी सो रहा है,
देख भारत रो रहा है, देख भारत रो रहा है;
अब भी चहुं-ओर अँधियारा है,
मानवता ने हमे पुकारा है,
कहाँ गए वो देश भक्त,
जो कहते देश हमारा है,
क्या भारत कोख में अपनी कायरों को ढो रहा है?
देख भारत रो रहा है;
जागो! देख हिमालय को,
जो जड़ों को अपनी खोल रहा है,
जो धोता रहा पैर हमारे;
आज हमी से बोल रहा है,
क्यों भारत के दामन मैं तू काँटों को बो रहा है,
देख भारत रो रहा है;
विश्व को जिसने संभाला,
आज वो पीछे क्यों है?
जिसने छुआ आसमां पहले,
आज वो नीचे क्यों है?
देश को रोशन जो करता वो सितारा खो रहा है,
देख भारत रो रहा है;
स्वार्थ का चोला हटाकर,
एक प्रण निश्चित करना है,
खुद को बदलकर आज हमें,
देश को विकसित करना है,
ए! मेरे भारत के वीरों देश पीछे हो रहा है;
देख भारत रो रहा है;
Manish "गमेदिल"
.
मुझे ना रोको तूफां हूँ मैं,
कुछ ना पूछो कहाँ हूँ मैं,
जहां बेबसी में कोई रोता मिले;
समझ ले नादाँ वहां हूँ मैं,
मिटता नहीं वो निशाँ हूँ मैं,
गमेदिलों का आशियाँ हूँ मैं,
अरे "गमेदिल" मुझे गम कहते हैं;
दिल की जमीं का आसमां हूँ मैं.................
Manish "गमेदिल"
.
I stumble down be can’t
Able to get up be can’t
May peoples laugh, but;
Not able howl be can’t
To live here so difficult,
My thoughts even hurt,
I’ve broken like pearls,
But shattered be can’t
What about hold-leaf,
Yet drown
I will not able to come
At the shore; be can’t
All dreams even crushed,
All wishes Sitting upset,
No glow in life “Gumedil”
Go down to knee, be can’t..............
Manish "गमेदिल"
.
"फरियाद कर रही है ये, तरसी हुयी निगाह,
मिल जाए किसी आइने में मुझको भी पनाह;
गुलशन-परस्त हो गया एक घर तलाशते,
है गुल नहीं तो क्या हुआ कांटों में भी निबाह;
ये कैसा मोड़ साकी था तेरे ख्यालों का,
रुक गयी है लब पे देख इस तरफ भी आह;
जो सूखे हुए फूल मिले तेरी किताब में,
वो मैं ही हू कह दे तू कुबूल हर गुनाह;
बुझे-बुझे चिरागों की बढ़ा दे तू लौ,
भटक न जाऊं कही हो के मैं गुमराह;
जिंदगानी दो दिन की मुस्कुरा ले तू,
होना ही है जिन्दगी का मौत से ही ब्याह,
आज फिर है बह चला "दरियाए-गमेदिल"
बहा दे मुझे इस तरह मिले न कहीं थाह........."
Manish "गमेदिल"
.
गुमनाम ही सही मैं,
बदनाम ही सही मैं,
पर नज़रों में अपनी एक इंसान तो हूँ मैं,
हो रहा मुश्किलों से,
मैं दूर मंजिलों से,
पर तूफां में भी जिन्दा एक अरमान तो हूँ में,
बन जाऊं मैं सहारा,
ले लूँ गम मैं सारा,
जिसको भी दुनिया मे बेअमा देखूं,
मिटा दूँ मैं अँधेरा,
खवाब है ये मेरा,
दे दूँ जबां उसको जिसे मैं बेजुबां देखूं,
माना बहुत गम है,
जिन्दगी मेरी कम है,
पर मिट ना सकेगी वो मुस्कान तो हूँ मैं,
दुनिया के हर सितम को,
जो अपने रंजो-गम को,
दिल की कोठरी में दफना नहीं सकता,
जो डरता है धारों से,
चलता है किनारों पे,
वो सुख की जन्नत को कभी पा नहीं सकता,
रोने लगे जमाना,
इस तरह मुस्कुराना,
"गमेदिल" गुलिस्तां का सुल्तान तो हूँ मैं,
पर नज़रों मे अपनी एक इंसान तो हूँ मैं...........................
Manish "गमेदिल"
.
खोज रहा हूँ ठिकानों में,
पत्थर के बने मकानों मे,
"खुली हुई" दुकानों में,
अपनों में अनजानों में,
बिखरे से अरमानों में,
सिसकते हुए तरानों में,
गुलशन में वीरानों में,
पतझड़ में पैमानों में,
प्रेमातुर परवानों में,
महोब्बत में दीवानों में,
वादों में बहानों में,
आंसू में मुस्कानों में,
खुशियों के खजानों में,
ग़मों के दहानों में,
बदलते फसानों में,
आते मेहमानों में,
सच्चे बेईमानों में,
बूढ़े सयानों में,
पर "इंसान" ना मिला "इंसानों" में................................
Manish "गमेदिल"