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ख़ुशी की तलाश में जब मैं निकला,
हर गली हर मोड़ पे गम ही मिले हैं;
कुछ गम मे रोते मिले,
कुछ गम में हँसते मिले;
कुछ ने तो अपने आसूँ तक पिए हैं;
गम के छीटें किसी और पे ना पड़ जाए,
कुछ ने तो अपने जख्म तक सिये हैं;
अपना गम जब हद से गुजर गया,
तो कुछ शायर;
तो कुछ कातिल तक बने हैं.................
Manish "गमेदिल"
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4 comments:
आपकी इस गमगीन नज़्म को पढ़ कर जगजीत का गाया ये शेर याद आ रहा है
ग़म बढ़े चले आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह
तुम छुपा लो ऐ दोस्त मुझे गुनाहों की तरह
आपकी खुबसूरत टिपण्णी के लिए "शुक्रिया"
अपना गम जब हद से गुजर गया,
तो कुछ शायर;
तो कुछ कातिल तक बने हैं.................
waah kya baat hai..!!
Sukriya Ada ji.......
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