दोषी कौन............... हम या हमारी संस्कृति?

on Wednesday, October 6, 2010

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मैं गत २० दिनों से ब्लॉग्गिंग की दुनिया से नदारद था। कारण था मेरे अनुज की अकाल मृत्यु। मेरा अनुज "दीपक" मेरी मझली बुआ जी का ज्येष्ठ पुत्र था तथा मुझसे ३ वर्ष छोटा था। उसकी मृत्यु ने मुझे कुछ बिन्दुओं पर सोचने पर मजबूर कर दिया। जो मैं आप के साथ बाँटना चाहता हूँ।

१* सूनी देहरी: - बताता चलूँ मेरी बुआ जी का देहावसान तीन वर्ष पूर्व हुआ था उस समय दीपक मात्र सोलह वर्ष का किशोर था। बुआ जी के दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ है। सबसे नन्ही बेटी मात्र एक वर्ष की थी।
अब सामने दो समस्याएं थी -
एक बच्ची का ख्याल कौन रख्खेगा? और दूसरी घर कौन संभालेगा?
नतीजा किशोर दीपक का विवाह करवा दिया गया।

२* दीपक का विवाह: - जिन परिस्थितयों में हुआ शायद कारण उचित हो। पर दीपक उस समय नाबालिग था, वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से परिपक्व नहीं था। उस समय वह १२वी का छात्र था। विवाह होने से ना केवल उसके भविष्य की गति पर विराम लग गया बल्कि उसकी नयी नवेली मात्र १५ वर्षीय पत्नी की जिम्मेदारी का अतिरिक्त बोझ भी पड गया। उसे अपने "भविष्य को ताक पर रखकर" कमाने के लिए "दिल्ली" जाना पड़ा। क्या यह उचित था? क्या दीपक से साथ इंसाफ किया गया? मैंने उस समय भी बहुत कोशिश की थी पर बड़ों के विचारों के आगे मेरी आवाज को दबा दिया गया था। बेचारा दीपक, भविष्य के लिए उसने क्या क्या सपने देखे होंगे उसे सब-कुछ कुर्बान करना पड़ा।
मैं आप से पूछता हूँ - क्या बच्ची तथा घर की जिम्मेदारी मिल कर नहीं उठाई जा सकती थी?
पर ऐसा नहीं हुआ।

३* १८ वर्षीय विधवा: - दीपक की अकाल मृत्यु ने उसकी पत्नी को बदहवास सा बना दिया है। उसकी हालत क्या होगी आप स्वयं अंदाजा लगा सकते है। मैं सिर्फ इतना कहूँगा की मैं उसकी हालत को उल्लेखित नहीं कर पाउँगा। पागलों जैसा ब्यवहार है उसका, हर आहट पर चौक जाना, शायद उसे अभी भी लगता है की दीपक वापस ज़रूर आएगा। यहाँ पर बताना चाहूँगा की दीपक की एक नन्ही सी परी "दिब्यांशी" भी है।

क्या होना चाहिए दीपक की पत्नी तथा उसकी परी का भविष्य? हमारे समाज के विद्वान पंडितों ज्ञानी का कहना है की हमारी संस्कृति के अनुसार एक विधवा को उसी घर में रहकर अपने ससुर, ननद और देवर का ख्याल रखना चाहिए। मैं आपसे पूछता हूँ - क्या यह उचित होगा? हम एक बार दीपक से साथ अन्याय कर चुके हैं क्या हमे अपनी गलतियों की पुनरावृति कर लेनी चाहिए? क्या यह उचित न होगा की दीपक की पत्नी जो की मात्र अठ्ठारह वर्ष की है, जिसने मात्र तीन वर्षों में ही पूरी जिंदगी जी ली, इन तीन वर्षों में वह बच्ची से ज़वान हुई, फिर माँ बनी और अब विधवा, का पुनर्विवाह कर दिया जाये। ताकि वह अपनी जिंदगी खुशहाल ढंग से जी सके। मेरी आवाज को बल दें ताकि मैं इन घिसे-पिटे रीति रिवाजों के चंगुलों से एक मासूम को आज़ाद करा सकूँ।

आपका मनीष सिंह "गमेदिल"

2 comments:

Pratik Maheshwari said...

यह सुनकर ही रूह काँप उठी है..
अशिक्षा ही ऐसे वाकयों का सबसे बड़ा कारण है..

आपकी मदद कैसे की जाए.. ज़रूर बताएँ..

Manish Singh "गमेदिल" said...

प्रतीक जी आपकी प्रतिक्रिया मिली, दिल को बड़ी तसल्ली हुई, बस आप लोगों की ही हौसलाफजाई की ज़रुरत है ताकि इस कार्य में कही मैं कमज़ोर ना पड़ जाऊ. अभी तो मैं उचित समय की प्रतीक्षा में हूँ जब सवयं दीपक की पत्नी से इस बारे मैं बात करूँ। क्यूँ की कुछ करने से पहले मुझे उसकी भी राय जानना ज़रूरी है।

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