नवशक्तियुग

on Thursday, August 19, 2010


"आज बाँहों में शक्ति को भरना है हमे,
गाँधी ही नहीं आजाद भी बनना है हमे,
शक्ति की आराधना करनी ही होगी,
अगर भारत को आज़ाद ही रखना है हमे।


कर चुके कितनी ही हम शांति वार्ता,
कोई बताये कितनी मिली हमे सफलता,
मीठी बाँतो से देश की रक्षा ना होगी,
हारते ही रहेंगे गर बांहों में शक्ति ना होगी,
अब कोई समझौता नहीं करना है हमे
अगर भारत को आज़ाद ही रखना है हमे

हम चले विश्व को शांति सन्देश देने,
किन्तु वो आ गया हमारे ही प्राण लेने,
मिटा सिंदूर कोख उजड़ी कितनो की,
किसने सुनी है पीड़ा दुर्बल-जनों की,
आज रिपु मान मर्दन करना है हमे,
अगर भारत को आज़ाद ही रखना है हमे

मत भूलो कुछ ही हैं मानवतावादी,
हर तरफ खड़ा है एक आतंकवादी,
प्रेम का राग जिसे आता ही नहीं,
शांति का सन्देश जिसे भाता ही नहीं,
एकजुट होकर आतंकवाद से लड़ना है हमे,
अगर भारत को आज़ाद ही रखना है हमे

वक़्त आ गया है शक्ति उपासना का,
पीड़ित भारत भूमि की आराधना का,
ह्रदय में हो प्रेम, बाँहों में शक्ति हो,
इस सफलता मंत्र की घोर साधना का,
नवशाक्तियुग का आवाहन करना है हमे,
अगर भारत को आज़ाद ही रखना है हमे

Manish Singh "गमेदिल"

2 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

राष्ट्र के प्रति आपकी भक्ति..दिखा रही है आपकी कविता...
बहुत प्रभावशाली ..
आभार...!!

Manish Singh "गमेदिल" said...

टिपण्णी के लिए धन्यवाद.........

आपकी प्रत्येक रचना मेरा उत्साहवर्धन करती है. आपने अपनी टिपण्णी देकर मुझमे जान से फूँक दी है....... आभार सहित ......

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